Monday, June 23, 2025

श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित पूरा मधुराष्टकम्

 

यह रहा श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित पूरा मधुराष्टकम् (Madhurashtakam) – संस्कृत श्लोक, लिप्यांतरण और सरल हिंदी अर्थ सहित:


🌸 मधुराष्टकम् 🌸

(श्री वल्लभाचार्य कृत)


1.
अधरं मधुरं वदनं मधुरं
नयनं मधुरं हासितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ:
भगवान का अधर, मुख, नेत्र, हँसी, हृदय और उनका चलना – सब मधुर हैं। मधुरता के स्वामी का सब कुछ मधुर है।


2.
वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं ब्रजितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ:
उनकी वाणी, उनके चरित्र, उनके वस्त्र, उनकी चितवन, उनकी चाल और ब्रज में विचरण – सब कुछ मधुर हैं।


3.
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ:
उनकी बाँसुरी, उनके चरणों की धूल, उनके हाथ, उनके चरण, उनका नृत्य और उनकी मित्रता – सब मधुर हैं।


4.
गीतं मधुरं पीतं मधुरं
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ:
उनका गायन, उनका पेय, उनका भोजन, उनकी निद्रा, उनका रूप, तिलक – सब मधुर हैं।


5.
करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ:
उनके कर्म, तरण (पार ले जाना), चुराना, रमण (संगति), उनका उलटना, और शांत करना – सब कुछ मधुर है।


6.
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा
यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ:
उनकी गुञ्जा-माला, यमुना नदी, उसकी लहरें, उसका जल और कमल – सब मधुर हैं।


7.
गोप्यः मधुराः लीला मधुरा
युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ:
गोपियाँ, उनकी लीलाएँ, उनका योग, उनका भोग, उनका दर्शन और उनकी सृष्टि – सब कुछ मधुर है।


8.
गोपा मधुरा गावो मधुरा
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ:
गोप, गौएँ, उनकी बांसुरी, उनकी सृष्टि, उनका दमन और फल देना – सब कुछ मधुर હે

Jay Sri krishna




---


🌅 सायं संध्या का मुख्य वैदिक श्लोक (यजुर्वेद)


🔸 गायत्री मंत्र (सायं संध्या में अनिवार्य):


> ॐ भूर्भुवः स्वः

तत्सवितुर्वरेण्यं

भर्गो देवस्य धीमहि

धियो यो नः प्रचोदयात्॥




अर्थ:

हम उस परम तेजस्वी सविता (सूर्य रूपी देव) का ध्यान करते हैं, जो हमारे बुद्धि को सत्कर्मों की ओर प्रेरित करे।



---


🔸 मार्जन मंत्र (शुद्धिकरण)


> अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।

यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥




अर्थ:

चाहे कोई अपवित्र हो या पवित्र, किसी भी स्थिति में हो, जो व्यक्ति भगवान विष्णु (पुण्डरीकाक्ष) का स्मरण करता है, वह बाह्य और आंतरिक रूप से शुद्ध हो जाता है।



---


🔸 अर्घ्यदान मंत्र (सायं सूर्य को जल अर्पण)


> ॐ सूर्याय नमः।

ॐ आदित्याय च सोमाय च।

ॐ अग्नये च ज्योतिर्ष्मते च।




अर्थ:

मैं सूर्य को नमस्कार करता हूँ, आदित्य और सोम को, अग्नि और ज्योति रूप देवता को अर्घ्य समर्पित करता हूँ।



---


🔸 शांतिपाठ मंत्र (सायं संध्या के अंत में):


> ॐ द्यौः शान्तिः अन्तरिक्षं शान्तिः

पृथिवी शान्तिः आपः शान्तिः

औषधयः शान्तिः।

वनस्पतयः शान्तिः

विश्वेदेवाः शान्तिः

ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः

शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥





--


Sunday, June 22, 2025

Jay Sri Krishna



संस्कृत श्लोक:

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः॥


हिन्दी अर्थ:

अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम — ये सातों चिरंजीवी (अमर) हैं। ऐसा माना जाता है कि ये अभी भी पृथ्वी पर विद्यमान हैं।


इन चिरंजीवियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी:

  1. अश्वत्थामा – द्रोणाचार्य के पुत्र, महाभारत युद्ध में अमरत्व का श्राप मिला।
  2. बलि – विष्णु के वामन अवतार द्वारा पाताल में भेजे गए, पुनः भविष्य में इन्द्र बनेंगे।
  3. व्यास – महाभारत के रचयिता, ब्रह्मज्ञान के प्रतीक।
  4. हनुमान – रामभक्त, शक्ति और भक्ति के प्रतीक, रामकथा जहाँ होती है, वहाँ वे उपस्थित रहते हैं।
  5. विभीषण – रावण का भाई, धर्म का साथ देने के कारण राम ने लंका का राजा बनाया।
  6. कृपाचार्य – महाभारतकालीन गुरु, युद्ध के बाद भी जीवित रहे।
  7. परशुराम – विष्णु के छठे अवतार, अमर हैं और कल्कि अवतार को शस्त्र-विद्या सिखाएँगे।

अगर आप चाहें तो मैं इन सभी चिरंजीवियों की विस्तृत कहानी भी दे सकता हूँ।बिलकुल! नीचे सातों चिरंजीवियों की विस्तृत जानकारी दी जा रही है — इनकी कथाएँ, विशेषताएँ और अमरत्व का कारण:



---


🌟 १. अश्वत्थामा (Ashwatthama)


परिचय: गुरु द्रोणाचार्य और कृपि के पुत्र। महान योद्धा और कौरव पक्ष के सेनापति।


विशेषता: ब्रह्मास्त्र का ज्ञाता, अपराजेय योद्धा।


अमरत्व का कारण: महाभारत युद्ध में पांडवों के पुत्रों की हत्या के कारण श्रीकृष्ण ने उसे श्राप दिया कि वह 3,000 वर्षों तक जीवित रहेगा, पीड़ा भोगता रहेगा, और कोई उसकी मरहम पट्टी नहीं कर सकेगा।


स्थिति: माना जाता है कि वह आज भी भटक रहा है।




---


🌟 २. राजा बलि (Raja Bali)


परिचय: दैत्यराज प्रह्लाद के वंशज, असुरों के पराक्रमी राजा।


विशेषता: अत्यंत दानी और धर्मपरायण।


अमरत्व का कारण: भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनसे तीन पग भूमि माँगी और फिर उन्हें पाताल लोक भेज दिया। परंतु वरदान दिया कि वह एक दिन पुनः इन्द्र का पद प्राप्त करेगा और पाताल लोक में चिरंजीवी रहेगा।


स्थिति: वह आज भी पाताल लोक में सत्यमार्ग पर शासन कर रहे हैं।




---


🌟 ३. वेदव्यास (Veda Vyasa)


परिचय: महर्षि पाराशर और सत्यवती के पुत्र। वेदों का विभाजन और महाभारत की रचना की।


विशेषता: ज्ञान, तप और आध्यात्म का मूर्त रूप।


अमरत्व का कारण: उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए वेदों को पुनर्गठित किया, पुराणों की रचना की — इसीलिए उन्हें चिरंजीवी माना गया।


स्थिति: माना जाता है कि वे हिमालय में तपस्या कर रहे हैं।




---


🌟 ४. हनुमान (Hanuman)


परिचय: पवनपुत्र, केसरी और अंजना के पुत्र, भगवान श्रीराम के परम भक्त।


विशेषता: अद्भुत बल, बुद्धि और भक्ति।


अमरत्व का कारण: श्रीराम ने उन्हें वरदान दिया कि जब तक धरती पर रामकथा कही जाएगी, वे जीवित रहेंगे।


स्थिति: जहाँ भी रामायण का पाठ होता है, वे अदृश्य रूप में वहाँ उपस्थित रहते हैं।




---


🌟 ५. विभीषण (Vibhishana)


परिचय: रावण के छोटे भाई, और धार्मिक प्रवृत्ति के राक्षस।


विशेषता: धर्मपरायणता के कारण रावण का विरोध किया और राम के पक्ष में आए।


अमरत्व का कारण: राम ने उन्हें लंका का राजा बनाया और कहा कि वे धर्म के रक्षक के रूप में चिरंजीवी रहेंगे।


स्थिति: आज भी वे लंका (श्रीलंका) में धर्म का मार्ग प्रशस्त करते हुए जीवित माने जाते हैं।




---


🌟 ६. कृपाचार्य (Kripacharya)


परिचय: शरद्वान ऋषि के पुत्र, कौरवों और पांडवों के कुलगुरु।


विशेषता: महान योद्धा और धर्मज्ञानी।


अमरत्व का कारण: युद्ध के बाद जीवित रहे और कलियुग में भी धर्मज्ञान देने हेतु अमर कर दिए गए।


स्थिति: हिमालय में ध्यानस्थ हैं, आने वाले समय में पुनः प्रकट होंगे।




---


🌟 ७. परशुराम (Parashurama)


परिचय: भगवान विष्णु के छठे अवतार, महर्षि जमदग्नि के पुत्र।


विशेषता: क्षत्रियों के दमनकर्ता, काल की आवश्यकता पर पुनः सक्रिय होते हैं।


अमरत्व का कारण: भगवान शिव से दिव्य अस्त्र प्राप्त किए और अमरता का वर मिला। वे कल्कि अवतार को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान देंगे।


स्थिति: महेन्द्र पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं।




---


✨ निष्कर्ष:


ये सात चिरंजीवी धर्म, भक्ति, ज्ञान और शक्ति के प्रतीक हैं। इन्हें स्मरण करने से जीवन में शुभता आती है।


Friday, June 20, 2025

श्रीकृष्ण मंत्र हिंदी में संपूर्ण अर्थ:

 

मंत्र:
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥"

इस मंत्र का हिंदी में संपूर्ण अर्थ:

"श्रीकृष्ण वासुदेव के पुत्र हैं, वे भगवान हरि हैं, जो परमात्मा स्वरूप हैं।
जो भी भक्त उनकी शरण में जाता है, उनके सभी दुःख और क्लेश नष्ट हो जाते हैं।
ऐसे गोविंद भगवान को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ।"

शब्दार्थ:

  • कृष्णाय – श्रीकृष्ण को
  • वासुदेवाय – वासुदेव (पिता) के पुत्र को
  • हरये – हरि (दुःखों को हरने वाले) को
  • परमात्मने – परमात्मा को
  • प्रणत: – शरणागत
  • क्लेशनाशाय – क्लेश (दुःखों) को नष्ट करने वाले को
  • गोविंदाय – गोविंद (गोप-पालक भगवान) को
  • नमो नमः – बार-बार नमस्कार

यह मंत्र भगवान श्रीकृष्ण की शरण में जाने और उनके द्वारा हमारे सभी दुःखों के नाश की भावना से भरा हुआ है।

Tuesday, June 17, 2025

कभगवद गीता अध्याय 2,

 

यहाँ भगवद गीता अध्याय 2, का विस्तृत हिन्दी व्याख्या सहित विवरण दिया गया है:


📜 मूल श्लोक (संस्कृत में):

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥


🪔 शब्दार्थ:

  • कर्मणि एव – केवल कर्म में ही
  • अधिकारः ते – तेरा अधिकार है
  • मा फलेषु कदाचन – फलों में कभी नहीं
  • मा कर्मफल-हेतुः भूः – तू कर्म के फल का कारण मत बन
  • मा ते संगः अस्तु अकर्मणि – और न ही तेरा झुकाव कर्म न करने में हो

📖 हिंदी अनुवाद:

"तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल का कारण मत बन और न ही कर्म न करने में आसक्ति रख।"


🔍 विस्तृत व्याख्या:

यह श्लोक भगवद गीता के सबसे प्रसिद्ध और गूढ़ श्लोकों में से एक है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन का एक गहरा सत्य बताते हैं, जो केवल युद्ध के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के जीवन में लागू होता है।

1. "कर्मण्येवाधिकारस्ते" – तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है:

इसका मतलब है कि हम अपने कर्तव्य और प्रयास पर ध्यान दें। हमारे हाथ में केवल कर्म करना है, उसे ईमानदारी, निष्ठा, और पूर्ण समर्पण से करना चाहिए।

2. "मा फलेषु कदाचन" – उसके फलों में कभी नहीं:

इसका मतलब है कि हमें फल की इच्छा या चिंता नहीं करनी चाहिए। फल हमारे नियंत्रण में नहीं होते, वे समय, परिस्थिति और परमात्मा की इच्छा पर निर्भर करते हैं।

3. "मा कर्मफलहेतुर्भूः" – तू कर्म के फल का कारण मत बन:

हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि फल मेरी वजह से ही मिला है या मिलेगा। कई बार हम अहंकार में आ जाते हैं कि "मैंने किया, इसलिए मिला।" यह सोच भी त्याज्य है।

4. "मा ते सङ्गः अस्तु अकर्मणि" – कर्म न करने में आसक्ति मत रख:

फल की चिंता से डरकर या निराश होकर कर्म से भागना भी गलत है। यह श्लोक हमें कर्तव्य से विमुख होने से रोकता है।


🧘‍♂️ शिक्षा:

  • यह श्लोक निष्काम कर्मयोग का आधार है – यानी फल की इच्छा छोड़कर कर्म करना।
  • यह हमें सिखाता है कि कर्म ही पूजा है, और जीवन में कर्म करते रहना चाहिए – निष्कलंक भाव से।
  • यदि हम हर कार्य को समर्पण भाव से, बिना स्वार्थ के करें, तो परिणाम अपने आप श्रेष्ठ होगा।

अगर आप चाहें तो मैं अगले श्लोक (2.48) या किसी अन्य अध्याय की भी इसी तरह विस्तृत व्याख्या दे सकता हूँ।

Sunday, June 15, 2025

Sanskrit shloka

 



Sanskrit Shloka:

Karmaṇy-evādhikāras te mā phaleṣhu kadāchana,
Mā karma-phala-hetur bhūr mā te saṅgo ’stvakarmaṇi.


English Translation:
You have a right to perform your prescribed duties,
but you are not entitled to the fruits of your actions.
Never consider yourself the cause of the results of your activities,
and never be attached to not doing your duty.


Let me know if you'd like explanation or translation of any other verse!

Saturday, June 14, 2025

How to relax your mind spiritully

 

How to Relax Your Mind Spiritually (300 Words)

In today’s fast-paced world, mental peace is often hard to find. To relax your mind spiritually, you must turn inward and reconnect with your inner self. Spiritual relaxation goes beyond physical rest—it brings deep peace, clarity, and balance. Here are a few ways to achieve it:

1. Meditation:
Daily meditation is one of the most powerful tools to calm the mind. Sit quietly, close your eyes, and focus on your breath. Let thoughts come and go without judgment. Even ten minutes of daily meditation can help you feel lighter and more centered.

2. Nature Connection:
Spending time in nature—walking barefoot on grass, listening to birds, or sitting under a tree—can help you feel spiritually grounded. Nature’s rhythms help reset the nervous system and connect us to something greater.

3. Gratitude Practice:
Write down three things you're grateful for each day. Gratitude shifts your energy from lack to abundance, which brings mental peace and spiritual joy.

4. Prayer or Affirmations:
Speak or think positive words that lift your spirit. Whether it's a prayer to a higher power or simple affirmations like “I am at peace,” these words can shift your mindset and calm your emotions.

5. Mindful Breathing:
Take a few deep breaths, slowly inhaling and exhaling. Conscious breathing brings your attention to the present and relaxes both mind and body.

6. Spiritual Reading or Music:
Read spiritual books or listen to calming music, mantras, or chants. These have a soothing effect and help raise your vibration.

Spiritual relaxation isn’t about avoiding life—it’s about becoming more aware and peaceful within. With regular practice, your mind becomes less anxious and more joyful, even in stressful times.

श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित पूरा मधुराष्टकम्

  यह रहा श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित पूरा मधुराष्टकम् (Madhurashtakam) – संस्कृत श्लोक, लिप्यांतरण और सरल हिंदी अर्थ सहित: 🌸 मधुराष्...